फ़िल्म देखकर मन कहेगा ‘मरजावां’


कोई है आपकी लाइफ़ में ऐसा, जिसे आप परेशान करना चाहते हैं? टार्चर करना चाहते हैं? अगर जो कोई ऐसा है, तो उसे ‘मरजावां’ देखने के लिए पैसे खर्च करके भेज दीजिए।

समझ नहीं आ रहा कि कहॉं से शुरू करूं। वैल, कहानी मुंबई की है, जहॉं अन्ना (नसर) है, जो टैंकर माफ़िया है। अन्ना के पास है रघु (सिद्धार्थ मल्होत्रा), जिसे अन्ना ने बचपन में रोड से उठाया था। रघु अन्ना का वफ़ादार है। अन्ना का बेटा विष्णु (रितेश देशमुख) है, जो हाइट में छोटा है, पर कमीनेपंती में बहुत बड़ा। कहानी में ज़ोया (तारा सुतारिया) है, जिससे रघु प्यार करता है, बार डांसर आरज़ु (रकुल प्रीत सिंह) है, जो रघु से प्यार करती है। एक पुलिस वाला (रवि किशन) है, जो रघु को अच्छा इंसान बनाना चाहता है। बदले और प्रेम की ये कहानी, जिसे हम कभी 90s में देखा करते थे, फिर से आ गई है।

मिलाप ज़ावेरी ने ये फ़िल्म क्यों बनाई, किससे बदला लेना था, पता नहीं। घिसी पिटी कहानी और पकाऊ डायलॉग्स के साथ फ़िल्म बनाना आसान नहीं, पर मिलाप ने ये कर दिया। डायलॉग्स इतने बोरिंग है कि हर बार मुंह से निकलेगा कि यार ये क्या बेवकूफ़ी है? फ़िल्म में सिर्फ रवि किशन का एक डायलॉग हंसाएगा, जब वो कहते हैं कि ‘इंडिया में लोगों का ये मानना है कि पुलिस हमेशा देर से आती है। मैं लोगों का ये विश्वास टूटने नहीं दूंगा, कल भी पुलिस देर से आएगी।’ इसके अलावा रितेश के मुंह से डायलॉग्स थोड़े बहुत अच्छे लगने के चांसेज़ भी थे, पर उन्हीं के अंदाज़ में बोलूं तो पकाऊ डायलॉग्स की हाइट पता है क्या है- ‘मरजावां’ के डायलॉग्स।

एक्टिंग के बारे में क्या बोलूं, समझ नहीं आ रहा। सिद्धार्थ मल्होत्रा ने जैसे कसम खा ली हो कि फ़िल्में करूंगा, तो इतनी ही पकाऊ करूंगा, वर्ना नहीं करूंगा। सनी देओल का अवतार लेकर, मुंह में माचिस की तीली रखकर, वो कुछ कमाल नहीं कर पाए हैं। मैं बदला नहीं लूंगा, इंतकाम लूंगा, जैसे डायलॉग्स बोलकर उन्होंने खुद ही अपना बेड़ा गर्क किया है। तारा सुतारिया सबसे स्मार्ट निकली। उन्होंने स्क्रिप्ट पढ़कर डायरेक्टर को बोल दिया कि अगर ऐसे डायलॉग्स हैं, तो मुझे गूंगी बना दो, जिसकी वजह सो वो ठीक लगी हैं। रकुल के पास करने को कुछ था ही नहीं। नसर ने अन्ना बनने के सुख में ये फ़िल्म कर ली होगी।

पूरी फ़िल्म सिर्फ एक चीज़ की वजह से मैं झेल पाई हूं, वो है इसके गाने ख़ासकर ‘तुम्हीं आना’। बाकी तो इनके गाने भी ओरिज़नल नहीं हैं। ‘एक तो कम ज़िंदगानी’ वाले गाने में नोरा फतेही का डांस इंट्रेस्टिंग है।

पूरी फ़िल्म सिर्फ एक चीज़ की वजह से मैं झेल पाई हूं, वो है इसके गाने ख़ासकर ‘तुम्हीं आना’। बाकी तो इनके गाने भी ओरिज़नल नहीं हैं। ‘एक तो कम ज़िंदगानी’ वाले गाने में नोरा फतेही का डांस इंट्रेस्टिंग है।

बस, इसके अलावा कोई ऐसी बात नहीं, जिसकी वजह से मैं ये फ़िल्म सजेस्ट कर सकूं। मेरी आपमें से किसी से कोई दुश्मनी नहीं, तो मैं नहीं कहूंगी कि जाकर देखिए, सिंगल स्क्रीन पर शायद थोड़ी बहुत चले ये फ़िल्म। हॉं अगर आप खुद ही 90s वाली एक्शन फ़िल्मों के दीवाने हैं तो अपने रिस्क पर देख लीजिए।

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