तो वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए शूजित सरकार ने अपनी फ़िल्म ‘गुलाबो सिताबो’ अमेज़ॉन प्राइम पर लॉन्च कर दी। अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना लीड रोल में हैं।
कहानी लखनऊ के 78 साल के मिर्ज़ा की है, जो लालची और काईयां आदमी है। मिर्ज़ा जिस जर्जर हवेली में रहता है, वो उसकी बीवी, जो मिर्ज़ा से 17 साल बड़ी है, फातिमा के नाम पर है और इसीलिए हवेली का नाम ‘फातिमा महल’ है। हवेली में कई परिवार रहते हैं, जिनमें से एक है बांके रस्तोगी। मिर्ज़ा और बांके के बीच हमेशा ही खटर पटर चलती रहती है। बात बढ़ते बढ़ते हवेली को बेचने तक पर आ जाती है। क्या होता है उस गिरती हवेली का, उस हवेली में फंसी सनकी मिर्ज़ा की जान का और बांके का, इसके लिए ये फ़िल्म देखिए।
जूही चतुर्वेदी और शूजित सरकार की जोड़ी इस मामले में बहुत मस्त है कि वो दोनों जब भी किसी विषय के साथ आते हैं, तो वो अपने आप में बिल्कुल अलग होता है। इस बार भी जूही चतुर्वेदी ने जिस तरह दो शेखचिल्लियों की कहानी को लिखा है, वो काबिलेतारीफ़ है। गुलाबो सिताबो का कठपुतली खेल, जो अब गायब होता जा रहा है, उसको भी हल्के से टच किया गया है। कुछेक सीन में तो आपको बहुत हंसी आने वाली है। कुछ कुछ डायलॉग्स बहुत ज़्यादा मज़ेदार हैं। लास्ट सीन में आयुष्मान, अमिताभ से पूछते हैं कि आपने खुद से 17 साल बड़ी बेग़म से शादी कर ली, आपने ऐसा क्या देखा? अमिताभ जवाब देते हैं -महल। आयुष्मान फिर पूछते हैं कि बेग़म ने आपमें क्या देखा, जवाब आता है -मेरी जवानी। 78 साल के मिर्ज़ा के इस जवाब पर बॉंके के एक्सप्रेशन्स को देखकर आप अपनी हंसी नहीं रोक पाएंगे। बीच में कहानी थोड़ी स्लो लगती है पर बाद में मज़ा आने लगता है। पुराने लखनऊ शहर को अविक मुखोपाध्याय ने बहुत ही अच्छे से कैप्चर किया है। शांतनु मोइत्रा का बैकग्राउंड स्कोर मस्त है और कहानी बढ़ने में मदद भी करता है।
एक्टिंग की बात करूं तो मिर्ज़ा के रोल में बिग बी पूरी तरह छा गए हैं। मोटी नाक, ढीला कुर्ता पजामा, झुकी कमर, ऑंखों पर मोटे लैंस का चश्मा, गोल गमछे से ढका हुआ सर और पॉंव पसार का धीरे धीरे चलना- अमिताभ बच्चान का ये हुलिया उनको मिर्ज़ा के रोल में फिट करता है। लहज़ा भी उनका पूरा अलग है। लालच को, चिड़चिड़ेपन का, सनक को उन्होंने बहुत अच्छे से दिखाया है। आयुष्मान भी इस फ़िल्म में तोंद निकाल कर अलग दिखे हैं। एक्सप्रेशन्स कमाल के हैं ही, बोलने के अंदाज़ पर भी उनकी मेहनत दिखती है। अमिताभ और आयुष्मान के रहते हुए, कम सीन्स में भी जिसने बाज़ी मारी है, वो हैं फातिमा बेग़म यानि फ़र्रुख़ जाफ़र। वो जब जब आई हैं, हंसा कर गई हैं। उनके सीन्स ज़्यादा होते तो बस मज़ा आ जाता। इसके अलावा विजय राज, ब्रिजेन्द काला का काम भी अच्छा है।
‘गुलाबो सिताबो’ की कहानी किसी उपन्यास की कहानी जैसी लगती है। कई लोगों को शायद ये कम पसंद आए पर जिस तरह से आम आदमी की मानसिकता को इसमें दिखाया है, जिस तरह से कहानी को ट्विस्ट के साथ बढ़ाया गया है, वो अपने आप में इंट्रेस्टिंग है। मेरी तरफ से ये फ़िल्म देखकर हंसा जा सकता है।