प्यार और दर्द को संभाल उड़ती ‘बुलबुल’


‘पाताललोक’ वेब सीरिज़ के बाद अनुष्का शर्मा, नेटफ्लिक्स पर अपनी वेब फ़िल्म लेकर आ गई हैं, जिसका नाम है ‘बुलबुल’। अभी तक अनुष्का शर्मा ने जिन भी फ़िल्मों को प्रोड्यूस किया है, वो सब सस्पेंस से भरी हुई हैं, चाहे वो ‘NH10’, हो, ‘फिल्लौरी’ हो, ‘परी’ हो, ‘पाताललोक’ हो या फिर ‘बुलबुल’ ही क्यों ना हो।

जब ‘बुलबुल’ का ट्रेलर देखा था, तब कहानी चुड़ैल की लगी थी, पर जब फ़िल्म देखी, तब पता चला कि कहानी बुलबुल, सत्या, इंद्रनील ठाकुर, महेन्द्र ठाकुर और बिनोदिनी की है। बुलबुल, जो एक छोटी बच्ची है, जिसकी शादी अपने से बहुत बड़े उम्र के ठाकुर से होती है, पर वो पालकी में साथ बैठे अपने देवर सत्या को ही अपना पति समझ बैठती है। इतनी कहानी प्रोमो में ही पता चल जाती है। पढ़ाई के लिए सत्या लंदन चला जाता है और 5 साल बाद जब वो हवेली वापस आता है तो सब कुछ बदला रहता है और उस बदलाव को जानने के लिए आपको ये कमाल की फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए।

अन्विदा दत्त को अगर आप अभी तक नहीं जानते हैं, तो इस कमाल की फ़िल्म के डायरेक्शन के बाद आप उन्हें ज़रूर जान जाएंगे। बचपन में सुनी हुई कहानी जैसी इस फ़िल्म को उन्होंने इस तरह से सबके सामने ला दिया है, जिसको देखते हुए आप पूरी तरह उसमें डूबे रहते हैं। आपका ध्यान बिल्कुल भी नहीं भटकता क्योंकि कहानी आपको पूरी तरह से बांधी हुई रहती है। 19वीं सदी की कोलकाता की कहानी, जिसमें हवेली के राज़, पुरूषों की मानसिकता, महिलाओं की जलन, बाल विवाह, विधवा जीवन, घरेलु हिंसा जैसे कई मुद्दे दिखाए गए हैं। बुलबुल को बिछिया पहनाती उसकी मॉं उसे समझाती है कि बिछिया पहनना इसलिए ज़रूरी होता है, जिससे औरत उड़ ना जाए, समाज की सोच की तरफ इशारा करने के लिए काफी है। ‘उल्टे पैर की चुड़ैल’ की बात होने के बाद भी इसे ‘हॉरर’ फ़िल्म का दर्जा नहीं दिया जा सकता। ये बात क्यों कह रही हूं, फ़िल्म देखने के बाद आपको पता चलेगा। ग्राफिक्स फ़िल्म में कमाल का है। अमित त्रिवेदी का बैकग्राउंड म्यूज़िक भी कहानी को पूरी तरह से सपोर्ट करता है। सिद्धार्थ दीवान की सिनेमेटेग्राफी लाजवाब है और लोकेशन इस कहानी को सच्चाई का सपोर्ट देते हैं। इसके अलावा कॉस्ट्यूम, मेकअप, आलता, पालकी हर छोटी छोटी चीज़ कहानी के हिसाब से परफेक्ट है।

‘बुलबुल’ यानि तृप्ति डिमरी ने इस फ़िल्म में जो काम किया है, उसे आप पूरी तरह महसूस कर सकते हैं। ‘लैला मजनू’ की लैला को इस फ़िल्म मे कई शेड्स निभाने का मौका मिला, जिसको उन्होंने बखूबी निभाया भी। मासूमियत हो, डर हो, दर्द हो या फिर चेहरे पर रहने वाली वो रहस्यमयी मुस्कान हो, तृप्ति के एक्सप्रेशन्स कमाल के हैं। खूबसूरत मुस्कुराती औरत सबसे खतरनाक होती है, ये लाइल अनजाने में ही याद आ गई। मैं बेहिचक इस बात को कह सकती हूं कि नई हिरोइन्स में, तृप्ति डिमरी का काम सबसे उम्दा है। लैला के साथ ही साथ इस फ़िल्म में मजनू उर्फ अविनाश तिवारी भी हैं, जिन्होंने सत्या का किरदार निभाया है। ‘तू है मेरा संडे’ और ‘लैला मजनू’ के बाद अविनाश को इस फ़िल्म में भी एक अलग किरदार निभाने का मौका मिला है। एक्टिंग और एक्सप्रेशन्स दोनों ही कमाल के हैं। अलग हेयर स्टाइल और बंगाली कैरेक्टर में वो बिल्कुल अलग लग रहे हैं। एक बार से उन्होंने साबित कर दिया है कि किरदार चाहे जो भी हो, वो उसको बखूबी निभा सकते हैं। राहुल बोस डबल रोल में हैं और दोनों ही कैरेक्टर में वो पूरी तरह फिट बैठे हैं। पाओली डैम ने भी अपने काम को बहुत अच्छे से किया है। स्त्री के ईर्ष्या भाव को उन्होंने एकदम सही दिखाया है। परमब्रता चट्टोपाध्याय भी डॉक्टर के रोल में जमे हैं। बहुत स्वाभाविक है उनकी एक्टिंग।

तो कमाल का डायरेक्शन, बेमिसाल एक्टिंग और लाजवाब कहानी के लिए ये फ़िल्म देखी जानी चाहिए।

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