मुस्कुरा कर जीता है ‘दिल बेचारा’


‘दिल बेचारा’ देखी। बहुत सारे लोगों ने देखी…इतने लोगों ने कि हॉट स्टार का सर्वर कुछ समय के लिए क्रैश कर गया। सुशांत की आखिरी फ़िल्म देखने का मौका शायद कोई मिस नहीं करना चाहता।

सबको दूसरों की फ़िल्म में कास्ट करने वाले मुकेश छाबड़ा ने अपनी खुद की पहली फ़िल्म के लिए कास्ट किया सुशांत को। कीज़ी बासु और इमैन्यूल राजकुमार जूनियर उर्फ मैनी की कहानी हम सबको दिखाई। मैनी के साथ कीज़ी यानि प्यार के दो परिंदे। ये कहानी ‘एक था राजा एक थी रानी, दोनों मर गए ख़तम कहानी’ से आगे की कहानी है। दो कैंसर पेशेंट्स, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी की उलझनों में हमें थोड़ी हंसी और बहुत सारी समझ दी।

जब फ़िल्म देखने बैठी, तो लगा कि बहुत रोने वाली हूं। जब फ़िल्म शुरू हुई, तो सुशांत के आने के बाद चेहरे पर बस मुस्कुराहट रही। मैनी के पागलपन को देखकर मैं हंसती रही। फिर आया थियेटर वाला एक सीन, जिसमें मैं वापिस उस रिएलिटी में चली गई, जहॉं सामने दिख रहा इतना कमाल का इंसान हमारे बीच में नहीं। दिमाग बस यही सोचता रहा कि किसने सोचा था कि ये आखिरी फ़िल्म सुशांत की ज़िंदगी की सच्चाई से इतनी ज़्यादा जुड़ी होगी। उनकी टीशर्ट पर लिखा ‘हैल्प’ शब्द भी ध्यान खींचता है और डॉक्टर को ये कहना कि ‘मैं एस्ट्रोनॉट हूं और नासा जाउंगा’ ये लाइन भी। अपनी मौत से पहले ही अपने दोस्तों से अपने बारे में सुनते हुए सुशांत के चेहरे को देखकर अपने इमोशंस को कंट्रोल करना बहुत मुश्किल होता है। ‘दिल बेचारा’ गाने को जिस तरह उन्होंने एक ही शॉट में पूरा किया है, उसमें उनका टैलेंट दिखता है। जब वो कहते हैं कि ‘जन्म कब लेना है और मरना कब है, ये हम डिसाइड नहीं कर सकते, लेकिन कैसे जीना है, वो हम कर सकते हैं’ आपको बहुत बातें समझा देते हैं। रजनीकांत का फैन, शाहरूख ख़ान की तरह रोमांस से भरे लड़के के रोल में सुशांत पर से नज़रें हटी ही नहीं।

सुशांत ने जिस तरह अपनी बॉडी पर काम किया इस फ़िल्म के लिए, वो 23-24 साल से ज़्यादा के लगे नहीं हैं। सुशांत सिंह राजपूत के साथ संजना संघी की जोड़ी बहुत ही स्वीट लगी है। संजना की एक्टिंग इतनी अच्छी लगी कि आने वाले वक्त में उनके लिए बहुत सारे दरवाज़े खुल जाएंगे। स्वास्तिका मुखर्जी, शाश्वत चटर्जी और साहिल वेद, अपने किरदार में पूरी तरह फिट बैठे हैं।अभिमन्यु वीर के रोल में सैफ अली खान एक सीन के लिए आए, पर अपनी एक्टिंग और अपने हिस्से के डायलॉग से वो छा गए।

फ़िल्म के एक सीन में कीज़ी पूछती है ‘क्या किसी के जाने के बाद हंस कर जिया जा सकता है?’ तो अभिमन्यु उर्फ सैफ कहते हैं – ‘जब कोई मर जाता है, तो उसके साथ जीने की उम्मीद भी मर जाती है, पर मौत नहीं आती है। खुद को मारना इल्लिगल है, तो फिर जीना पड़ता है और क्योंकि तुम एक दूसरे से स्टूपिड प्रॉमिसेज़ करते हो कि तुम्हारे मरने के बाद हंस कर जियूंगा, तो फिर हंसो।’ ‘दिल बेचारा’ भी रूलाते हुए हंसने पर और हंसाते हुए रोने पर मजबूर करती है। मैं ये नहीं कहती कि ये सुशांत सिंह राजपूत की बेस्ट फ़िल्म है, पर हॉं, ये एक ऐसी फ़िल्म ज़रूर है, जिसे ज़रूर देखना चाहिए। ये एक ऐसी फ़िल्म ज़रूर है, जो ज़िंदगी के लिए आपके प्यार को जगाती है। ये एक ऐसी फ़िल्म ज़रूर है, जिसे देखकर लगता है कि मुकेश छाबड़ा ने इसे सुशांत के लिए ही बनाई थी।

एक आखिरी बार, सुशांत की इस फ़िल्म को देखते हुए उन्हें मुस्कुरा कर विदा करते हैं। सैरी? विल मिस यू मैनी…

One thought on “मुस्कुरा कर जीता है ‘दिल बेचारा’

  1. Nice one. what may come, life is to be lived and loved powerfully 👍👍

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